क्या हो गये हम
धन की लालसा
आधुनिकता का बवंडर
कुविचारों की शरण मे
चले गये हम
दोस्ती विश्वास नही
वफा की तलाश नही
कामुकता को ओढ़
भोगी बन गये हम
अकेलेपन का शिकार
नफा नुकसान अपना विचार
सपनो की दुनियां के
सौदागर हो गये हम
कोई रास्ता नही
कोई मंजिल नही
कोई लगाम नही
पथभ्रष्ट हो गये है हम
बेख्याल बेअसर
किंचित विक्षिप्त
तन पर अधफटे वस्त्र
अर्धनग्न विचरते
बेगैरत हो गये हम
स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल