क्या होगी पतंग की मंजिल
यह जमीन मेरी है
जमीन पर बना घर मेरा है
घर की छत मेरी है
घर के कमरे की खिड़की से दिखता आसमान मेरा है
आसमान में बहती हवा मेरी है
हवा संग उड़ता परिंदा मेरा है
आसमान में उड़ती एक पतंग मेरी है
उसकी डोर का एक सिरा मेरी अंगुलियों में और
दूसरा किसी अदृश्य हाथों में है
पतंग मेरी है
उसकी डोर मेरी है
उसे उड़ा मैं रही हूं
नहीं उड़ा रही गर तो
उसे जो कोई और उड़ा रहा है
उसे, पतंग और पतंग की डोर
सबको देख पा रही हूं
पतंग का रास्ता
पंतन की दिशा
पंतन की उड़ान
कुछ हद तक तो मेरे काबू में है लेकिन
यह कटकर कहां गिरेगी
किसकी छत पर
कौन मेरी अमानत,
मेरी दौलत और
मेरे ख्वाबों को लूट लेगा
क्या होगी इसकी मंजिल
यह सब मेरे हाथ में नहीं है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001