क्या है , तेरा अपना यहाँ
अनजाने में भी
न सोचना कि कभी
तेरा कुछ है यहाँ पर,
न तेरी यह मुस्कराहट
न तेरा यह बदन
न तेरा यह महल है,
इन पर हक़ किसी और का
तूं तो कुम्हार का
वो बर्तन है,
जैसे ढालेगा
वो तूं ढल जायेगा
तेरी सांस , आये
न आये, कोई न रोक पायेगा
पानी सा बुलबुला है
जरा सी ठेस में
फूट जायेगा
आदमी, क्या है
कठपुतली
बस एक कठपुतली
सोचता है कुछ
पर वो सोचता है कुछ
तूं उड़ने की सोचता
वो रोकने की सोचता
तूं, सच कुछ नहीं
नहीं है हक़
तेरा खुदा पर
इस बात पर न गुमान
कर, फिर सोच
सब यही का है,
तेरा तन भी यहीं रह
जायेगा, और
उड़ जाएगी
“””आत्मा””
बता तेरा क्या साथ
जायेगा.!!!
कवि अजीत अजीत तलवार
मेरठ