क्या हम सब डर गए***
बॉर्डर पे लग गयी है आग
दिलों में उठ रहे हैं सैलाब
दुश्मन की बात का जवाब देना
न बांध लेना अपने हाथ !!
सर काट के वो बलवान बन गए
तब से मेरे इरादे भी हैवान बन गए
इक सर के बदले में उडा दूँ उसका समाज
जो इन्होने मेरे वीरों के घर उजाड़ गए !!
हाथ पे रख कर हाथ नेता सिरमोर बन गए
संसद में कर दिया हमला तो डरपोक बन गए
डाल कर ताबूत के भीतर वीरों का जिस्म अब
नेताओं को राजनीती के नए खेल मिल गए !!
कब तक सहन होगा, कब तक सहा जायेगा
इस बात का बदला दुश्मन से कब लिया जायेगा
दोस्ती का हाथ बढ़ा कर हमारे नेता उनसे
पता नहीं किस महाजाल के भीतर बन्ध गए !!
उजड़ गयी मांग जिसकी, घर खाली सा लगने लगा
दिल में मेरे बदला लेने का खून अब उबलने लगा
डर के आतंकवादियो से क्या देश मेरा डर गया
क्या उनकी धमकी देने से हम सब भी डर गए !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ