क्या हम वास्तविक सत्संग कर रहे है?
लोगों को वास्तविक सत्संग मिल ही नही रहा।ना लोग चाह रहे है।अच्छे से मेकअप आर्टिस्ट से मेकअप करवाके , सुंदर सजीले वस्त्र पहने कथावाचक जों कथा कम और लच्छेदार बाते लपेट -लपेट के देने में सक्षम हो आकर व्यासपीठ पर शोभायमान हो जाते है।श्रोताओं की रुचि अनुरूप कथावाचक हो गए है ऐसा न होकर कथावाचक को सत्य ही प्रस्तुत करना चाहिए ।
मैं कोई हिंदू धर्म विरोधी या सनातन संस्कृति का शत्रु नहीं हूं।बल्कि धर्म में आई बुराईयों को, कुरीतियों साफ करना चाहता हूं।अपने घर को साफ करना जैसे घर के सदस्यों का कर्त्तव्य है ऐसे ही अपने धर्म में आई कुरीतियों को हटाना भी अपना कर्त्तव्य है।ना की उसको गलत कहके धर्म को ही छोड़ दिया जाए।कुरीतियां सभी में मिल ही जाएगी परंतु अपने को अन्य धर्मों में फैली कुरीतियों की ओर नहीं देखना है ,वो उनकी देख लेंगे।आप तो अपना आंगन बुहारो।जो दूसरे की गंदगी साफ करने चलता है उसकी खुदके घर गंदगी बनी रहती है।ये मैं इसलिए कह रहा हूं की अधिकतर देखने में आता है की जब हम अपने धर्म की कुरीतियों को बताते है तो अन्य विशेष वर्ग टांग अड़ाने आ जाते है।उनसे निवेदन है की अपना- अपना देख लो ।और यही बात में अपने धर्म के लोगों से कहना चाहूंगा।
आज कल कुछ विशेष कथावाचक चमत्कारों को ले ले के बैठे है ,पर्चे वाले,भूखे रहने वाले, कुछ को माता आ रही है,भौतिक उन्नति के लिए तरह तरह के टोटके उपाय बताने वाले।तरह तरह के स्वांग रचकर भक्त फॉलोअर्स बढ़ाने का प्रचलन चल रहा है।वाकई में ये दुनिया को बेवकूफ नहीं बना रहे है दुनिया इनको बेवकूफ बना रही है।जहां किसी को थोड़ी से प्रसिद्धि मिली की दुनिया उसके आगे पीछे उसके सारे काम करने लगती है क्योंकि उन्हें अपना उल्लू भी सीधा करना रहता है।वास्तव में इनका ध्येय पैसा और ख्याति प्रसिद्धि ही रहता है।हालांकि किसी भी भांति प्रभु में लगे रहने से देर सवेर कल्याण ही होगा अतः यह संभावना बनी रहती है की झूठा स्वांग करते करते कभी विवेक जाग्रत होकर ये वास्तविक भक्ति में लग जाएं।
ये सब ड्रामे छोड़कर लोगों को सीधा सच्चा भक्ति का मार्ग बताए।अपनी पूजा ना करवाकर प्रभु की भक्ति में लगवाए तो काम की बात है। ऐसे में ना तो खुद का कल्याण होना है ना श्रोताओं या शिष्यों का ही कुछ भला होगा।
क्रमश: ……..
©ठाकुर प्रतापसिंह राणा
सनावद(मध्यप्रदेश)