क्या हम ख़ुश हैं ??
क्या हम ख़ुश हैं ??
दिन-रात हम मेहनत करते
ज़िंदगी में कशमकश करते
आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु
चारों तरफ़ दौड़-भाग करते
जब खुशनुमा माहौल देखते
हम भी ख़ुशी से झूम उठते….
पर अंत: से क्या हम ख़ुश हैं??
हम अपनी तुच्छ स्वार्थ सिद्धि हेतु
प्राकृतिक धरोहरों का दोहन करते
हम अपने पापी पेट की आग बुझाने
निरीह पशु-पक्षियों का भक्षण करते
हरी-भरी धरती के आलिंगन के बदले
ना जाने कितने तरह के सितम करते
येन-केन-प्रकारेण अपने मकसद में
हम एक दिन पूरे सफल भी हो जाते
फिर भी अंत: से क्या हम ख़ुश हैं??
चकाचौंध सी दुनिया को पाने के वास्ते
कर्त्तव्य-पथ पर भ्रष्टाचार में लिप्त होते
निहित निज स्वार्थ व क्षुधा पूर्ति करने
मासूम महिला के साथ बलात्कार करते
दो चार बित्ता जमीन पाने की लिप्सा में
अपने अपनों तक की हत्या कर देते….
यहाॅं पे खुद को बस,हम सांत्वना दे सकते
कानून के लंबे हाथ से तो बच नहीं सकते…
तो इन हरकतों से अंत:से क्या हम ख़ुश हैं??
जीवन के पायदान पर तेजी से चढ़ने हेतु
कितने सारे नियमों का उल्लंघन करते…
अपनी सभ्यता-संस्कृति को दाॅंव पे रखके
पाश्चात्य संस्कृति को सदा बढ़ावा देते….
अपनी काबिलियतों का दिखावा करके
घर के बड़े सदस्यों की अवहेलना करते
यदा-कदा जीवन में इन राहों पे चलके….
बड़े-बुजुर्गों के दिलों की छलनी कर जाते !
भले कुछ समय के लिए हम विजय पा जाते
पर ऐसा करके अंत: से क्या हम ख़ुश हैं??
नहीं नहीं नहीं, अंत: से क़तई हम ख़ुश नहीं
फिर ये तात्कालिक ख़ुशी हम क्यों अपनाएं
क्यों नहीं अपने आप में तुंरत परिवर्तन लाएं
झूठी ख़ुशी के दम पर क्यों हम दाॅंव लगाएं
ख़ुशी जो जीवन में स्थायित्व प्रदान नहीं करे….
उसे जीवन के अफ़सानों का साक्षी क्यों बनाएं??
ऐसी ख़ुशी को गले लगाएं जो सदा ही हॅंसाए !!
कभी खुद से ही पूछना न पड़े…क्या हम ख़ुश हैं??
स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
***किशनगंज, बिहार***
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