क्या हमारे लिए कुछ छोड़ा है तुमने ?
परिंदे पूछते हैं इंसानों से ,
क्या धरती पर तुमने हमारे लिए ,
कुछ छोड़ा है ?
बोलो ! हम कैसे जिएं ?
यह आसमान जिसपर हम विचरते थे ,
कारखानों के धुंए से मटमैला कर दिया ।
बोलो! हम कहा उड़े ?
इन हवाओं में हम भी सांस लेते थे,
इनको भी तुमने वाहनों और कारखानों के
धुंए से विषैला कर दिया ।
हमारा दम घुट रहा है ,
बोलो !हम सांस कैसे ले ?
तुमने धरती के सभी जलस्रोत मैले कर दिए ,
हम कुछ पर अपना अधिकार जमा दिया ।
अब बताओ! हमें प्यास लगे तो पानी कहां से पिएं?
तुम्हे खुद के रहने के लिए जमीन चाहिए थी ,
तुमने अनगिनित पेड़ काट डाले ।
इन्हीं में हम अपने घोंसले बनाते थे ।
तुमने हमारा छोटा सा घर भी उजाड़ दिया।
अब बोलो ! हम कहां रहे ।
इस धरती पर सब कुछ तो तुमने बरबाद कर दिया।
अपने स्वार्थ और लालच में अंधे होकर ।
हमारे बारे में तुमने एक बार भी नहीं सोचा ।
सारी सृष्टि पर तुमने कब्जा कर लिया ।
क्या हमारे लिए धरती पर तुमने,
छोटा सा कोना भी छोड़ा है ?