क्या से क्या हो गया?
क्या हुआ से कैसे हो गया तक का सफ़र जब आएगा
तब आंखों के सामने बीता हुआ समय घूम जाएगा
होगा पछतावा गलती का, कि आख़िर दूरी कहां आई
क्यों हमने बेगाना कर दिया उसे जो थी हमारी परछाई
सुना था कही कि जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है
तो फिर क्यों उस पाले हुई की निशानी गई आज भुलाई
दिखावे जैसा लगने लग जाता है प्यार
समझ नही आता कहां गया वो हंसता खेलता परिवार
छूट गया हाथ माता पिता का और छूट गया वो बचपन
छूट गया साथ मायके का अब नहीं रहा वो आंगन
बहुत दूरियां बढ़ा दी किसी ने
झूठ भी सच लगने लगा है
कोई रिश्ता था सगा वो भी अब ठगने लगा है
ना जाने इतना कमजोर कैसे निकला वो धागा प्रेम का
जो किसी के कहने पर टूट गया
साए की तरह साथ रहने वाले बचपन के साथी का अब साथ छूट गया
मन ही मन में बैचैन रहती हूं
कभी कुछ कहना हो तो खुद से कहती हूं
पता नहीं कैसे गुनेहगार हो गए
क्या बिगाड़ा दिया आखिर मैंने जो बिना गलती के कुसुरवार हो गए
होगा एक दिन अहसास गलती का
जब मैं इस दुनिया से जाउंगी
चाहे कितनी भी आवाज देना तुम मुझे वापिस लौट कर नहीं आऊंगी
कितना कुछ रह जायेगा मन में ये ना किसी को कहना है
बहुत सोचा सबके लिए अब तो सुकून वाली नींद सोना है
फिर देखते रहना तुम चेहरा मेरा एक बार भी नहीं मुस्कुराऊंगी
कैसी हो पूछा नहीं कभी, कैसे हो गया पर आजाओगे
अपने हाथों से तुम मुझको लाल चुनरी ओढ़ाओगे
सोचा तो तुमने भी नहीं होगा कि अपनी बहन को ऐसे सजाओगे
हो जाऊंगी चुप सदा के लिए फिर मेरी आवाज सुनने को तरस जाओगे
मैं जानती हूं आज खूब रोवोगे तुम लेकिन अब बहुत पछताओगे।
विदा किया था आंगन से अब अंतिम विदाई में भी तो आओगे
दुनियादारी निभाने की खातिर इस सफ़र में भी साथ निभाओगे
फिर मन में सवाल उठेगा काश एक बार मैं पूछ लेता
कैसी हो से कैसे हो गया तक ये आज ऐसे नही होता।
रेखा खिंची ✍️✍️