मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
वक़्त के किनारे समझूं या क्या समझूं?
रुककर अब तो बैठे है,सुकून भर कहीं
राह पर मजारे समझूं या क्या समझूं ?
सोचता हूं ऐसा होता तो क्या होता
जिंदगी दीवारें समझूं या क्या समझूं?
शोर है एक, मन के हर दर- दरवाजों पर
हैरत गलियारे समझूं या क्या समझूं?
भूलते गए जिन्हें अब याद आते है
सफर के नजारे समझूं या क्या समझूं?
मुद्दत – ओ बाद कहीं तारा झिलमिलाता है
फलक के सितारे समझूं या क्या समझूं?
कितनी ही लकीरें ‘मनी’ बनती बिखरती है
हाथ में दरारे समझूं या क्या समझूं?