क्या विकाश पगला गया है?
सफर की शुरुआत
जिन्दगी अपने साथ सपनों की सतरंगी दुनिया लेकर आती है| चाहे वो अमीर के घर आए या फकीर के घर|खुशियां बराबर मनायी जाती है, फर्क तो सिर्फ प्रदर्शन के प्रक्रिया में प्रतीत होता है|जिन्दगी की पहली किलकारी सुनकर किस माँ-बाप का दिल खुशियों की कुलांचे नहीं मारने लगता है |
जब पतझड़ ने बसंत के लिए रास्ता छोड़ दिया,
जब प्रकृति ने पृथ्वी को रंग बिरंगे फूलों के गोटे से सजी हरी चुनरी पहना दी,
जब कोयल की कूक से कामिनियों के दिल बहकने लगे,
जब प्यार के पैगाम मंजिलों तक खुद ब खुद पहुँचने लगे;
ऐसे माहौल में एक नई जिंदगी ने इस लोक में कदम रखा| मिटटी की दीवाल के ऊपर खपड़ैल की छान से निर्मित एक बड़ा सा कमरा जिसे हम उस जमाने का स्टूडियो अपार्टमेंट भी कह सकते हैं | उसी कमरे के एक कोने में जज्बातों और भावनाओं के पुंज रूपी एक बालक का जन्म होता है, शुरू होती है “विकाश” की जीवन यात्रा|विकाश
के आते हीं उस परिवार में कुछ ऐसा हुआ कि लोग हैरान रह गए। पूरे गांव के लोग समझ नहीं पा रहे थे कि जो हो रहा है उसे समझें तो क्या समझें। पिला मामा (दादी) का घर पूरे गांव के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया था।
विकाश की पहचान यात्रा
जशोदा के जरूरतों और ज़ज्बातों एवं जम्हूरियत के प्रति उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाने की कोशिश का नाम है “विकाश”, गुरुजनों के आदर्शवाद के पालन का आदेश और बर्तमान समय के व्यवहारिकता के बीच चल रहे संघर्ष का नाम है “विकाश” , “विकाश” नाम है उन तमाम युवकों का जो दिल में देश और समाज के लिए कुछ भी कर गुजरने की चाहत रखते है पर साथ है आधुनिक समय के महत्वाकांक्षी परिवार के सफल सञ्चालन की महती जिम्मेदारी.
जब जब जिस्मानी जरूरतों को नुरानी नजरानों के आगे नतमस्तक होते देखता, दिमाग की दमनकारी दलीलों को दिल की दरख्वास्तों के आगे दम तोड़ते देखता; उसकी शख्सियत मानसपटल पर चलचित्र की तरह अंकित हो जाता.
वह आज की दुनिया से अलग सोचता , दुनिया को दुनिया की निगाहों से परे देखता, और कुछ ऐसा कर जाता कि क्या अपने क्या पराये सब के सब कह उठते – ” विकाश पगला गया है क्या?”
जशोदा का अंतर्द्वंद
आज जशोदा बहुत ही खिन्न थी. विकाश के आदर्शवाद और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे भारीभरकम शब्दों के बोझ तले मानों दबी जा रही थी. घर के नियमित कामों में व्यस्त अपने आप को कोसते कोसते कब रसोईघर गई और चाय बना लाई पता ही नहीं चला. जरा सा हिलने डुलने मात्र से चूं चां करने लग जाने वाली कुर्सी पर बैठकर लिक्कर चाय (काली चाय) की चुस्की लेते हुए जशोदा अपने आप से कानाफूसी करने लगी- ना जाने किस जनम के पापकर्म थे जो ऐसा पति मिला है. इससे तो अच्छा होता कुंवारी ही मर जाती. चाय की निकोटिन भावनाओं के वेग को और गति प्रदान कर रही थी. भावनाओं का प्रबल प्रवाह आज सारी हदें पार कर जाने को मचल रही थी. जशोदा भी आज उसे पूरा सहयोग कर रही थी. वह बडबडाती जा रही थी- ” कौन समझाये इस मुन्हझौसें को कि स्कूल से लेकर कोचिंग क्लास तक, शब्जी वाले से लेकर दूधवाले तक सबके सब को रोकड़ा चाहिए होता है. वहां आदर्शवाद का चेक कोई नहीं लेता. इस कलमुंहे को क्या पता मुझपे क्या गुजरती है, जब गहनों से लदी शर्माइन मुझसे पूछती है, इस तीज भाई साहब ने आपको क्या प्रेजेंट किया? हाथ में चाय की प्याली लिए कुर्सी पर बैठी जशोदा एक टक बल्ब को घूरे जा रही थी. जब भी जशोदा विचारों की दुनिया में होती तो उसका एकमात्र सहचर हौल में लगा बल्ब होता. कब घंटा बीत गया पता ही नहीं चला. विचारों की दुनिया से जब जशोदा बाहर निकली तो बल्ब ने प्यार से कहा, जशोदा तुम्हारी चाय ठंढी हो गयी हैं , जाकर गरम कर लो. जशोदा एक आज्ञाकारी बालिका की तरह रसोईघर की ओर चल पड़ी.
घंटे भर के वैचारिक रस्साकस्सी के बाद चाय भी ठंढी हो गई थी और विचारों का प्रवाह भी. एक सुकून भरा हल्कापन महसूस कर रही थी जशोदा. कहते हैं की जिस तरह उबलते पानी में अपना चेहरा साफ़ साफ़ नहीं दिखता ठीक उसी प्रकार विचारों की उफान में आप किसी की शख्सियत को भी ठीक से नहीं परख पाते हैं. जो जशोदा घंटा भर पहले विकाश की इज्जत की मिटटी पलीद करने में कोई कसर नहीं छोड़ राखी थी, वही जशोदा यह सोच सोच कर मन ही मन फुदक रही थी की विकाश चाहे खुद के लिए और परिवार के लिए कितना ही कठोर क्यों न हो लेकिन दुनिया के लिए एक सच्चा सहृदयी इन्सान है. उसकी बेचारगी इस बात में है कि वह किसी दुखी को देखकर खुद दुखी हो जाता है, उसकी परेशानी का हल निकालने में वह इस कदर मशगुल हो जाता है कि…..
विकाश द्वारा कैंसर पीडिता के लिए सहयोग जुटाना, उत्तर बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए आर्थिक सहयोग की व्यवस्था करना, अर्थाभाव के कारण अपने बच्चों के हत्यारे की खिलाफ केस नहीं लड़ पाने वाले बुजुर्ग दपंती के लिए यथोचित मदद करना वगैरह वगैरह. जशोदा के मन में विकाश के प्रति नाराजगी की भाव के मजबूत किले में सम्मान के भाव के सिपाहियों ने सेंधमारी शुरू कर दी थी.