क्या लिख दूँ
आज फिर मन उलझन से भरा है,
शब्दों का सैलाब दिल दरिया में उठ रहा है,
कुछ शब्द करुणा से भरे, तो कुछ उल्लासित क्षण लिए,
कुछ थोड़े रूठे हुए , कुछ गर्मजोशी से भरे ,
कुछ है छटपटाहट से भरे , कुछ मनुहारों से भरे ,
मैं असमंजस में हूँ कि,
क्या लिखूँ, कैसे इनको व्यक्त करूँ ??
इन शब्दों को एकत्र कर आज कथा लिख दूँ
पर मन पुनः उलझन से भरा है कि क्या लिखूँ… क्या लिखूँ ….??
नेत्र जो यथार्थ में फैली बीमारी व पीड़ा को देख रहा ,
आँखों में अश्रु लिए, ईश्वर की वंदना कर रहा ,
मैं असमंजस में हूँ कि इस पीड़ा का क्या करूँ ??
जैसे को यथा लिख दूँ |
पर मन पुनः उलझन से भरा है कि क्या लिखूँ… क्या लिखूँ ….??
मस्तिष्क में चीन की क्रूरता के प्रति रोष है भरा ,
दिल बेचैन और शहीदों के प्रति शीश है झुका ,
शब्दों में आतुरता, कुंठा, छटपटाहट और आक्रोश है
इनका क्या करूँ…. ?
तिरस्कार करूँ, अन्यथा इन्हें लिख दूँ !
पर मन पुनः उलझन से भरा है कि क्या लिखूँ… क्या लिखूँ ….??
मुझे अब जो दिख रहा, वह अनुभव का अध्याय है,
यही संसार का सार और परोपकार का पर्याय है,
अब मैं असमंजस में नहीं हूँ
मैं हर्षित और भावों से परिपूर्ण हूँ
अहा ,मैं अब इन्हें ना छोड़ूँगी ,
इन्हीं हर्षित क्षणों से काव्य की रचना करुँगी |
इन्हीं हर्षित क्षणों से काव्य की रचना करुँगी ||