“क्या लिखूं”
सोचती हूं कुछ लिखूं,
शब्द आएं लिख ना पाए,
मन में भाव लहरों से आएं
बनते बनते फिर मिट जाएं
इस असमंजस में, मै क्या लिखूं !
कभी कभी मन को भी समझ ना आए
कभी सयाना, कभी भोला बन जाए
मै क्या बताऊं, कहां गई मै उलझ
इस उलझन में, मै क्या लिखूं !
मन मस्तिष्क द्वंद बढ़ता जाए
विचारों का जाल बनता जाए
मन विचारों में
ख्वाब टूटा देखती हूं !
इस द्वंद मैं कैसे लिखूं
चाह कर भी मैं लिख न पाऊं !