क्या लिखूं
आज फिर से कागज़ और कलम पर हमारा ध्यान आया
फिर से दिल की बातों को पन्नों पर उतारने का ख़याल आया
फिर से बहुत सी बातों का दिल में तूफ़ान आया
पर सोचती हूँ क्या लिखूं
जो काटे न कटे उस घडी को लिखूं
फूलों के साथ लिपटी काटों की लड़ी को लिखूं
आग बरसाती यादों की फुलझरी को लिखूं
सोचती हूँ क्या लिखूं
जिसकी मुझे तलाश है वो अपनों का प्यार लिखूं
जिससे थोड़ी सी आस है वो अपना घर-बार लिखूं
हर बार नयी चोट खाता अपनों पर ऐतबार लिखूं
सोचती हूँ क्या लिखूं
क्या बरसते बादल की छवि पन्नों पर रख दूँ
या ताक पर कभि न पुरे होने वाले सपनों को रख दूँ
या फिर कटघरे में अपनों को ही रख दूँ
सोचती हूँ क्या लिखूं
आशा की किरने देती झरोखों को
खिडकियों से आती हवा के झोंके को
क्षणभर के लिए खुश करती बारिशों को
झूठी शान और नुमायिशों को
किसे रख दूँ मै कलम के निचे
सोचती हूँ क्या लिखूं
इस बार ऐसा क्या लिखूं जो हमें थोडा सुकून दे
दिल को थोडा आराम और हमें नया जूनून दे
जीने का नया रंग और खुशबु बिखेर दे
जो कुछ मेरी और थोड़ी सबकी बलाएँ फेर ले
सोचती हूँ क्या लिखूं
दिल की दरिया के किस हिस्से को पन्नों पर रख दूँ
ज़िन्दगी की मुश्किलों को एक नयी परख दूँ
सभी अक्षमताओं को दरकिनार कर दूँ
सोचती हूँ क्या लिखूं
क्या ये कोरा कागज़ समेट पायेगा दिल में उमड़े सैलाब को
या फिर ये भी औरों की तरह दे जाएगा झूठा दिलाशा आपको
मन से इस परेशानी को कैसे विदा कर दूँ
सोचती हूँ क्या लिखूं
क्या कोरे कागज़ की किस्मत यही है
अपनी परेशानी उन्हें दे देना सही है
इस दुनिया में उनका अस्तित्वा नहीं
क्योंकि वो हमारे साथ रहकर भी जीवित नहीं
पर मुझे है कुछ उनसे सुनना कुछ अपनी कहूँ
सोचती हूँ क्या लिखूं……