क्या लिखूं
गीत
कह दिया है सभी कुछ तो
क्या लिखूं मैं अब व्यथा
हर व्यथा के सामने है
अनकही मेरी कथा
हाथ में मौली बंधी है
आंख है अपनी ठगी
भाल पर मंगल तिलक है
हाट पर बोली लगी
हर वृथा के सामने है
अनकही मेरी कथा।।
खा रही है जिंदगी को
सांस दीमक की तरह
तेल अपने पी गए सब
एक दीपक की तरह
हर कुशा के सामने है ।
अनकही मेरी कथा।।
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हर विमोचन कह रहा है
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हर प्रथा के सामने है
अनकही मेरी कथा।।
कह दिया है सभी कुछ तो
क्या लिखूं मैं अब व्यथा।।
सूर्यकांत द्विवेदी