” क्या लिखूं मै “
क्या लिखूं मै..??
अपनी बेबसी..!!
कौन पढ़ेगा ?
और किसको दिलचस्पी है
इस व्यथा को सुनने में,
पूछती हूं मै खुद से
क्या कभी मैंने सुना है..??
रुदन से भरे
उस समुंदर की लहरों को,
या पेड़ पर बैठी
उस मधुर आवाज को,
तड़प धरा की उबलते हुए आग को,
क्या कभी मैंने सुना है..?
सड़क पर बैठी उस अकेली औरत
और उसकी लाचारी को,
बंद दरवाजे कर लिया था मैंने
और खुश थी अपनी दुनिया में
मार्मिक परिस्थितिया थी कपाट के उस पार,
क्या कभी मैंने सुना है..?
दर्द से कहारती उस
ममता रूपी आंचल को,
कलम उठा और लिख दिया
बिना सोचें,
क्या कोई समझेगा
मेरी इस लाचारी कों।