क्या लिखूँ – डी के निवातिया
क्या लिखूँ
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ऐ हुस्न-ए-कातिल, तेरी मचलती अदाओ की शान में क्या लिखूँ I
किसी चमन में खिलता सुर्ख गुलाब,या तेरे चहरे का रुआब लिखूँ I I
टूटा जो दर्पण होकर शर्मशार, इसे तेरी निगाँहों का वार लिखूँ I
इसे मै कत्लेआम कहुँ या तेरी शातिर नजरो का कमाल लिखूँ I I
तेरे गुजरने से चटकती है कलियाँ, क्या गुलशन का हाल लिखूँ I
इसे गुलो की ह्या कहुँ, या तेरी मस्त अदाओं का बवाल लिखूँ I I
ठहर जाती है उफनती सागर की लहरें, क्या उनका मैं हाल लिखूँ I
करती है सजदे ये तेरे सत्कार में,या तेरी रवानी का तूफ़ान लिखूँ I I
बदल जाता है रुख हवाओं का, इसे तेरी आहट का कमाल लिखूँ I
तेरी खुशबू का असर कहुँ या इसे शोख अदाओं का धमाल लिखूँ I I
छुप-छुप के बादलों के बीच, ताकते चाँद का शर्माना आम लिखूँ I
उसे जन्नत की हूर कहुँ ,या ज़मीं पे उतरता बारास्ता चाँद लिखूँ I I
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स्वरचित: डी के निवातिया