क्या रोइए ऐसे दुख पे जो आप से आप को लगा है
क्या रोइए ऐसे दुख पे जो आप से आप को लगा
चलिए उठिए मुस्काइए कि घाव अब रिसने लगा है
हमें दरकार थी कि इक बार पुकारे वो हमको
हाय अब तो वो गैरों में हमें भी गिनने लगा है
शहर छोड़ आए कि याद शजदा न करे उसका
गली गली में नक्स ए यार अब दिखने लगा है
~ सिद्धार्थ