क्या ये वहीं दिवाली है?
क्या ये वहीं दिवाली है
जो हर साल आया करती है?
कितनों ने कई अपनों को गंवाया,
कईयों ने एक ही कमाऊ पुत्र।
कितनों ने कई आशाएं गंवाई,
कईयों के परिवार ना रहे एकसूत्र।
क्या ये वहीं दिवाली है
जो हर साल आया करती है?
किसीने गंवाये उनके पिता,
किसीने उनकी माता,
किसीने गंवाये दोनों,
ईश्वर की ये लीला मैं, कुछ समझ नहीं आता।
क्या ये वहीं दिवाली है
जो हर साल आया करती है?
कितनों ने उनकी आमदनी गंवाई,
कईयों ने रोजी-रोटी,
कितनों के घरों में अँधियारा है आज,
कईयों की खुशिया घर नहीं लौटी।
क्या ये वहीं दिवाली है
जो हर साल आया करती है?
कई अपनों को बचाने के लिए करते रहे बंदगी,
कईयों ने दिए कितने बलिदान फिरभी ना बचा सके जिंदगी।
क्या ये वहीं दिवाली है
जो हर साल आया करती है?
कितनी दौड़ा-दौड़ी की लेने के लिए प्राणवायु,
मिला, फिरभी लंबी हुयी ना आयु।
क्या ये वहीं दिवाली है
जो हर साल आया करती है?
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सर्जक: पंकजकुमार सोलंकी (असिस्टेंट प्रोफेसर)
जुनागढ (गुजरात)