क्या यही प्यार है
क्या यही प्यार है,
जबकि अधूरा है अभी तो,
मेरा वह सपना,
जो संजोया था तुमको पाकर,
अमर प्रेमकथाओं को पढ़कर,
सूफी संतों की वाणी सुनकर।
लव इज गॉड,लव इज लाइफ,
यही सोचकर जोड़े थे मैंने,
तुमसे अपनी वीणा के तार,
ताकि जीवित हो सके फिर से,
मेरे जीवन का संगीत,
मुस्करा उठे फूल-पक्षी,
दोनों के उदास चेहरे,
मगर तोड़ दिया तुमने हौसला।
क्या यही प्यार है,
मैंने तो लगाया था यह बाग,
अपना खून और पसीना बहाकर,
और सींचा था इसको बड़े अरमान से,
भविष्य के बहुत सुनहरे सपनें देखकर,
और हो गया तू तो दूर मुझसे,
डरकर दुनिया के सवालों से,
फंसाकर मुझको प्रेम जाल में,
क्या यह महज तेरा नाटक था,
क्या खिलौना था मेरा दिल,
जिससे खेलकर फैंक दिया।
क्या यही प्यार है———————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)