क्या मेरा गुनाह था ?
राहों में बैठे हम पलकें बिछाये
मगर लौट कर तुम अब तक ना आये
बस इतना बता दो क्या मेरा गुनाह था
जो आँखों से हमने यूँ झरने बहाए
बड़ी खुशनुमा थी हमारी कहानी
थी यारों की महफिल और थोड़ी शैतानी
मगर अब वो लम्हें हुए कल गुजरा
जिन लम्हों में हमने सपने सजाए
बस इतना बता दो क्या मेरा गुनाह था
कर बऱबाद मुझको जो ना शरमाए
था ज़िक्र हमारा हर जुबाँ प कल तक
है सब कुछ अधूरा जो मेरा था कल तक
ये किश्मत थी मेरी या तेरा करम था
जो तन्हा कर मुझको तनिक मुस्कुराये
बस इतना बता दो क्या मेरा गुनाह था
जो आकर भी तुमने गले ना लगाये
… भंडारी लोकेश ✍️