क्या मंज़र था …..
रुख्सते यार का मंजर भी क्या मंज़र था
मैने खुद को खुद से बिछड़ते देखा….
कौन कहता है प्यार होता नहीं सच्चा आजकल
इनकी रूह को बेबस होकर रोकर तड़पते देखा |
रुख्सते यार का मंजर भी क्या मंज़र था
मैने खुद को खुद से बिछड़ते देखा….
कौन कहता है प्यार होता नहीं सच्चा आजकल
इनकी रूह को बेबस होकर रोकर तड़पते देखा |