क्या बात है आखिर
क्यों ऐसे दिन हैं उजड़े से , क्यों रूठी रात है आखिर
है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर
क्यों ये बहारें भी नजर को रास न आएं
क्यों सूकूं के पल दिल के पास न आएं
क्यों बुझा सा दिल ये मेरा आज है जाने
ये ही है मेरा अंजाम या आगाज है जाने
समझ में आए न कुछ भी , ये क्या हालात है आखिर
है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर
अंतर्मन न जाने क्यों हुआ ये मौन है मेरा
अगर तुमसे न पूछूं तो कहो कि कौन है मेरा
मेरे अपनों में कोई अब तलक न ऊंचा है तुमसे
यही बस सोचकर ये बात मैंने पूछा है तुमसे
हुई दिल की जमीं पर गम की क्यों बरसात है आखिर
है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर
कभी भी अपने इस दिल की हिफाजत की नहीं मैंने
हुए हालात जो कुछ भी, शिकायत की नहीं मैंने
कभी भी भाव धीरज का , किया ना दूर था मैंने
हंसके खुशियों और गम को किया मंजूर था मैंने
मगर इस बार जाने खा गया क्यों मात है आखिर
है खोया मन ये क्यों मेरा , कहो क्या बात है आखिर
विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली