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4 May 2019 · 1 min read

क्या फिर वे दिन आएंगे

क्या फिर वे दिन आएंगे
क्या फिर वे दिन आएंगे।

अलबेली यादों का मिलना
कलियों जैसे हरदम खिलना
बारिश की बूंदों सा बहना
कागज़ की कश्ती सा चलना
क्या हृदय कुसुम मुस्काएँगे
क्या फिर वे दिन आएंगे।

रात रात तारों सा जगना
सपनों की दुनियां में सजना
गीतों की एक तार बजाना
मित्रों संग सुर ताल सजाना
सन्ध्या में स्वर लहरायेंगे
क्या फिर वे दिन आएंगे।

जीवन एक ललक है बाकी
अन्तस् ही अन्तस् का साथी
चाहों के जीवन सागर में
लहरें ज्यों अठखेली खातीं
गीली बालू के आकारों को
सीपों की माला पहनाएंगे
क्या फिर वे दिन आएंगे।

डॉ विपिन शर्मा

Language: Hindi
2 Likes · 417 Views

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