” क्या फर्क पड़ता है ! “
क्या फर्क पड़ता है !
कलम दो रूपए का हो या दो हजार का ,
उसका काम तो सिर्फ लिखना है ।
लिखने का निर्णय तो हमारा होता है ,
किसी के लिए सजाए मौत तो किसी के लिए जिंदगी ।
क्या फर्क पड़ता है !
घडी़ सोने की हो या प्लास्टिक की ,
उसका काम तो सिर्फ समय दिखाना है ।
समय देखने का निर्णय तो हमारा है ,
किसी के लिए दुःख की घडी़ तो किसी के लिए खुशी ।
क्या फर्क पड़ता है !
रूपए मंदिर से आए हो या शमशान घाट से ,
उसे तो सिर्फ जरूरत पुरा करना है ।
घृणा या सौगात हमारे सोच से उत्पन्न है ,
किसी के लिए शगुन तो किसी के लिए अपशगुन ।
क्या फर्क पड़ता है !
ये शरीर हिदूं का हो या मुस्लमान का ,
बनावट तो एक ही मिट्टी का है ।
लाल रक्त , मांसपेशियां और लगभग एक ही समान हड्डियों के ढांचे पर खाल ,
बस थोडा़ रंग – आकार का हैं भेद ,
किसी के लिए संतुष्टि तो किसी के लिए खेद ।
?धन्यवाद?
✍️ ज्योति