क्या पता कल रहें ना रहें——–!!
#क्या_पता_कल_रहें_न_रहें……..!!
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मित्रों हम चले जायेंगे।
शायद ! जी हाँ शायद सबको याद भी आयेंगे ?
पर मैं चाहता हूँ,
ह्दय से मानता हूँ,
याद अच्छे कृत्य कर आना, अच्छा होता है।
अतः लोग कहें !
अच्छा था,
दिल का बहुत ही सच्चा था,
उर में कोई क्लेश नहीं पालता था,
तभी तो सबका प्यारा था, सबका दुलारा था,
आँखों को नही सालता था।
कुछ लेकर नहीं गया, बस दे गया है,
रिश्तों से भरा संसार,
स्वच्छ, सुंदर, निर्मल, पावन व्यवहार।
स्नेह की पुकार, प्रीत की फुहार,
अनुराग भरे मनुहार।
कुछ ! छोड़ गया है, विलखता परिवार,
सुबकता घर आंगन और द्वार,
रंगोत्सव, राखी, दीपोत्सव का हर वो त्यौहार,
शुद्ध, विशुद्ध, अकलुष, पावन विचार।
याद आते है ! उसके कर्म, धर्म, सत्कर्म।
आचार, विचार, सदाचार।
पीड़ादायक है ! उसका यूं चले जाना, लौट के न आना।
तुम याद आते हो, बहुत सताते हो,
यादों में जब भी आते हो, यार रुलाकर ही जाते हो।
जब जाना ही था, तो पूर्णतः चले जाते ,
ऐसे जाने का क्या फायदा?
कहते थे तुम, यार हो हमारे ,
फिर हमें रुलाने से तुम्हारा क्या फायदा?
बड़े निर्मोही हो, विद्रोही हो, विछोही हो,
जाने से पहले तनिक बता तो देते,
हम से विदा तो लेते
एक पल को जता तो देते।
पर नहीं ……. निर्णय के पक्के हो,
बस चल दिये, निशब्द , कुछ बोला नहीं।
मन में पाल बैठे जाने की उत्कण्ठा, खोला नहीं।।
चलो जहाँ हो, सुखी रहना,
कभी कंधार सपने में आना और कहना।
यार हमें भी तुम्हारी याद आती है,
आज निर्जीव हूँ तो क्या हुआ,
पल पल रुलाती है, पल पल रुलाती है, पल पल रुलाती है।
मित्र तुम्हारी मित्रता, तुमसे मिलने को,
अब भी बुलाती है, मरणोपरांत भी सताती है।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’