क्या दौर है
***** क्या दौर है *****
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भला ये भी क्या दौर है,
किसी पर भी ना जोर है।
पता था बाहर कौन है,
सुना पायल का शोर है।
नज़र आया पर मौन है,
दिखा जंगल में मोर है।
गगन में छाये मेघ हैं,
घटा छाई घन घोर है।
चला मनसीरत राह पर,
बहुत दूरी पर छोर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)