क्या देखते हो…
क्या देखते हो…
खामोश दीवारों से इधर-उधर
क्या देखते हो?
अपने ख्वाबो में पल रहे
खामोश लहरों को देख
आगन में पसरी धूप के साये में
मुरझाई तुलसी के पत्तों पर पड़े
सिकन को देख
क्या सोचते हो?
क्यों चला आता है
तेरे घर का रास्ता
चलते-चलते मेरे घर तक भी
इन राहों पर चलकर
तुम क्या ढूढते हो?