क्या, तुम प्रेम में हो
क्या, तुम प्रेम में हो….?
बसंत की दस्तक
और हवाओं में उड़ता
एक ही सवाल
क्या, तुम प्रेम में हो….?
बसंती ब्यार, पीले पत्ते उड़ाती
प्रेम का गीत गाती है
हवाओं में प्रेम का उन्माद
हवाओं में छिपे
असंख्य प्रेम के पैग़ाम
हवाओं में बजता जलतरंग
सिर्फ़ महसूस होते हैं
हवा के झोंके जब छूते हैं
व्याख्या रहित प्रेम
निर्विवाद, तर्क रहित प्रेम
अघोषित, सूक्ष्म प्रेम
सदैव उपस्थित, पर आँखों से ओझल
नीरव, नदारद, एक रहस्य प्रेम
सहज, जो बस हो जाता है
सिर्फ़, अहसास
जैसे ठंडी लहरों का पैरों को छू जाना,और रेत का पैरों तले खिसक जाना
अपने आप में पूर्ण,अदभुत,
विलक्षण प्रेम
जहाँ कुछ शेष नहीं रहता
शरद पूर्णिमा के चाँद की तरह
समुद्र में ज्वार भाटा लाता प्रेम
प्रेम एक असीम आनंदानुभूति,
असीम स्पंदन का परिचायक
काले मेघों से बरसता और भीगता प्रेम
क्या, तुम प्रेम में हो……?
क्या , तुम प्रेम में हो……?
©️कंचन”अद्वैता”