क्या घबराना …
क्या घबराना
अंत समय गर आया ॥
जिसको पोषित करना था
लहू से अपने उसको सींचा
आँखों के पानी से उसकी
प्रीति बेलि थी बोई
क्यों दुख पाना
जब अपना फर्ज निभाया।
मौसम बारी- बारी
हर सुख आया तेरी क्यारी
फूल मिले नित तुझको
फल ने मधु रस बरसाया ।
क्यों दुख पाना
जब सर्द का मौसम आया।
मत सोचो
क्या कुछ किया मैंने
औ’ क्या न कर सका
जीवन बीता इसी जंजाल में
बना इंद्रजाल सा मन
क्या घबराना …
– मीरा ठाकुर