क्या खोया क्या पाया
जीवन की सांध्य बेला है
आओ आकलन कर ले,
क्या खोया, क्या पाया
आओ कुछ तो सोच ले।
बचपन में माँ बापू का
अनवरत अनुशासन ,
उसके बाद से लगातार
प्रिया का झेलते प्रशासन।
जीवन के तृतीय सोपान
की ओर मैं बढ़ रहा,
बेशक बहुत कुछ याद है
पर कुछ भूलता भी गया।
अब तलक के सफर में
बहुत लोग ऐसे भी मिले,
जो झूम कर गले लगे
भुला सब गीले शिकवे।
पर कुछ लोग ऐसे हुए
जो कभी हमसे नही मिले,
पर बिना किसी कारण
दिखे हमेशा मुहँ फुलाये।
मुझे आज लगता है निर्मेश
मैंने खोया है कुछ भी नही
आपकी दुवाएं मेरे लिए मित्र
किसी पूँजी से कम नही।
क्या खोया क्या पाया है
न कुछ लाया न जाना है,
जग एक झूठा मेला है
हाथ पसारे ही जाना है।
गम नही जो धन ना मिला
बेशक मुझको गम मिला,
तुझे मुबारक तेरा वैभव
मुझको तो बस सितम मिला।
परहित में सब धन खोया
बेशक थोड़ा यश कमाया,
मेरे नाम के ऊपर भी
लोगो ने अपना नाम लिखाया।
दुनिया का दस्तूर पुराना
धोती वाला कमाता आया,
मेहनत कितना भी करता
पर मजा टोपीवाला है पाया।
कुछ खोते कुछ पाते साधो
जीवन का संग्राम चल रहा,
जिसके हाथ दिया था फूल
मुझे पत्थर लेकर ढूंढ रहा।
निर्मेश बहुत कुछ बीत गया
अभी बीतने कुछ है बाकी,
बेशक पैमाना इठला रहा
दूर देखता रहा है साकी।
निर्मेश