## क्या खोया क्या पाया””
क्या खोया क्या पाया हमने इस तकरार में?
बिखरे रिश्ते-नाते गलतफहमी के शिकार में।।
रेत के कुछ बना घरौंदे करते थे आवाजाही।
कितना मजा जब लड़ते थे बचपन के प्यार में।।
दूर रहकर भी मिल जाते जब भी जी ने चाहा।
मिल न पाते पास रहकर भी अब त्यौहार में।।
मिटा दिया सबने घरौंदा बना लिया सीमेंट घर।
किलकारियाँ क्या दर्द चीख न जाती दीवार में।।
हम भी वही, वह भी वही, वही है सारा जमाना।
जाने दूरियाँ क्यूँ बढ़ी, क्या बदला इस संसार में।।
मैं बैठ बंद कमरे में , सोचता रह गया अकेला।
बिछड़े मिलेंगे की नही, नदिया के किनार में।।
तस्वीर दिखा हम गूगल में रिश्ते बता रहे है।
बाजू रहकर हम न जाते है अब उनके द्वार में।।
दिल रो उठता निरुत्तर होता एक सवाल में।
पूछे बच्चा क्यूँ पापा कोई बचा रिश्तेदार में।।
नजरें बचा भर आँख कहते बच्चों से राजा।
जन्म लिया है बेटे तूने, भरे पूरे परिवार में।।
है वक्त का तकाजा कुछ मतभेदों का खेल।
वरन् मिल ही जाते, गुड्डे गुड़ियों के बाजार में।।
“जय” चाहे बना घरौंदा, लूँ सबको आज पुकार।
कुछ देर सही सब लें आएँगे अपनों को उपहार में।।
संतोष बरमैया”जय”
कुरई,सिवनी,म.प्र.