क्या-क्या नहीं किया
दरबार में गुरूर के सजदा नहीं किया
हमने कभी ईमान का सौदा नहीं किया
परवाह थी सभी की सो ख़ामोश ही रहे
ख़ामोशियाँ जो टूटी तो परवा नहीं किया
उनका अदब़ किया जो जले रात भर मगर
बुझते हुए च़रागों को रुसवा नहीं किया
सूरज की किरन रोज जगाती रही हमें
हमने कभी दरीचों पे परदा नहीं किया
चाहा है जब से मौत को महबूब की तरह
तब से हयात से कोई रिश्ता नहीं किया
खुशबू ये इश्क़ की है जो बदनाम कर रही
हमने कहीं भी आपकी चर्चा नहीं किया
इल्ज़ाम दे रहे हो कि हमने किया है क्या
कैसे बताऊँ तुमको कि क्या-क्या नहीं किया