क्या कोई जाता है?
क्या कोई जाता है?
धन, दौलत,शोहरत और मकान लेकर
आदमी चला जाता है बस!
जिंदगी भर का लगान देकर
जो बोया था वही काटा है
यही तो जिंदगी का तमाशा है
वजूद मिट जाता है एक पल में
चलते बनो एहसान कर कर
क्या कोई जाता है?
धन, दौलत,शोहरत और मकान लेकर
जिन्दगी कम है और काम बहुत
न दिन ज्यादा है न शाम बहुत
क्या करेगा कोई ताउम्र
खुशियों की बोगस दुकान लेकर
क्या कोई जाता है?
धन, दौलत,शोहरत और मकान लेकर
हश्र होना क्या है, ये जानता है आदमी
पर ये बात मरने तक कहाँ मानता है आदमी
पूर्वजों को इल्म था के सबका हश्र एक ही है
फिर चल बसे नदी किनारे मसान देकर
क्या कोई जाता है?
धन, दौलत,शोहरत और मकान लेकर
-सिद्धार्थ गोरखपुरी