क्या कृष्ण है मंदिर में?
झूलता पालने का हर, बच्चा-बच्चा कृष्ण है।
छुपकर डिब्बे से चीनी खाता, हर बच्चा कृष्ण है।
कृष्ण धर्म नहीं वह कर्म है,
मंदिर मे नहीं, सर्वत्र हैं।
वह पूजा नही, विश्वास है ।
घर-घर में कृष्ण का वास है ।
माँ से भाई की शिकायत करता, हर बच्चा ही कृष्ण है।
छुपकर डिब्बे से चीनी खाता, हर बच्चा कृष्ण है ।।
उठाकर तर्जनी में गोवर्धन,
मस्तक पर न थी, जिसके सिकन।
मानवता की, बनकर मिशाल,
टीका रहा, बनकर पहाड़।
इस सोच से पल रहा , हर बच्चा ही कृष्ण है ।
छुपकर डिब्बे से चीनी खाता, हर बच्चा कृष्ण है।।
कृष्ण पूजा नहीं व्यवहार है ।
स्वरूप नहीं विचार है ।
न जाने मंदिर में कौन है?
कृष्ण तो व्यापक दृष्टिकोण है।
घर की जिम्मेदारी उठाए ऐसे, पिता स्वरूप भी कृष्ण है।
अरे! छुपकर डिब्बे से चीनी खाता, हर बच्चा कृष्ण है।
गर भक्ति है आपकी सच्ची,
आवश्यकता नहीं अगरबत्तियों की..
जलाकर कर्म का धूप,
बना लो विचार अनुरूप।।
तभी होगी भक्ति कृष्ण की …
अन्यथा, मूर्ति तो बहुत है ,मिट्टियों की….
सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं,????
✍️ ज्योति