क्या कहें उन्हें?
क्या कहें उन्हें
जो जर्जर-संस्कृति के
बोझ तले दबे हैं
गर कोई उठाना चाहता है उन्हें
इस बोझ के तले से
उन्हें ये बंधु
अपना दुश्मन
संस्कृति-विरोधी
मान बैठते हैं.
ये खुद तो दबे हैं
पुरा-जर्जर संस्कृति तले,
दूसरे आमजनों की
प्रगति-राह में भी
ब्रेकर बने हैं.
आत्मलीनता के शिकार
जर्जर-संस्कृति के पहरेदार
ऐसे लोगों को क्या कहें-
हठी
अपने आप में
ठहरे
कनबहरे?
(लोगों की आम मनोवृत्ति से व्यथित होकर
14 जनवरी 2013, गुरु वार को लिखी कविता)