क्या कहूँ
कुछ कहूँ इससे पहले कि कुछ कह जाऊं
बहुत मुमकिन है मैं भी धार में बह जाऊं
तू नहीं करती संजीदगी से मुझसे बात कोई
कि सब बातें संजीदगी से मैं सह जाऊं
तू चल तो सही अपने हिस्से की चाल कोई
या बदल के पासा मैं तेरी जगह जाऊं
कौन कहता है शह मात से बड़ी होती है
देख मैं हार के भी मानिंद – ए – शह जाऊं
मैंने खुद को तू बना डाला है कर यक़ीन
चाहता हूँ मैं जहाँ पहुँचूँ तेरी तरह जाऊं
कहा है तो वस्ल का वादा निभाना तुम अजय
यूँ न हो कि मैं इंतज़ार में ही कहीं रह जाऊं
अजय मिश्र