क्या कहूँ किसी एक को दिल ये ज़रा-ज़रा सबने तोड़ा
क्या कहूँ किसी एक को दिल ये ज़रा-ज़रा सबने तोड़ा
कुछ थे मेरे अपने और ज़रा- ज़रा रब ने तोड़ा
देखा है जब भी ग़ौर से इनसां को मैने किसी
साफ़ नज़ारे देखना इन आँखों के ढब ने तोड़ा
ख़्वाब कहाँ पलकों के लिये गर हैं नींदें गहरी
है कौन नहीं वाक़िफ़ ख्वाबों को मतलब ने तोड़ा
दम टूटता ना था या रब रिश्ता छूटता ना था
माहौल अमन का हाय गुस्ताख उस लब ने तोड़ा
बंद डिब्बे का सामां मुझे मिला कीड़ों के साथ
देखिए नफ़रत का गुरूर ख़ुश्बू की छब ने तोड़ा
शर्म-ओ-हया का बोझ ‘सरु’रहेगा सर पे कब तक
जानती हूँ ये कि मेरी जात को अदब ने तोड़ा
छोड़े थे वहाँ मैनें तो महके हुए लफ्ज़ कुछ
भरम दिल का मेरे उनके हाय सबब ने तोड़ा