क्या कहुँ?
घर पर रहें सुरक्षित रहें।
तुझे क्या कहूं बीमारी कहूं कि बहार कहूं, पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं, संतुलन कहूं कि संहार कहूंँ
कहो तुझे क्या कहूंँ?
मानव जो उदंड था, पाप का प्रचंड था, सामर्थ्य का घमंड था, मानवता खंड-खंड था , नदियां सारी त्रस्त थी , सड़के सारी व्यस्त थी , जंगलों में आग थी , हवाओं में राख थी , कोलाहल का स्वर था , खतरे में जीवो का घर था , चांद पर पहले थे , वसुधा के दर्द बड़े गहरे थे , फिर अचानक तू आई , मृत्यु का खौफ लाई , मानवों को डराई , विज्ञान भी घबराई , लोग यूं मरने लगे , खुद को घरों में भरने लगे , इच्छाओं को सीमित करने लगे , प्रकृति से डरने लगे , अब लोग सारे बंद है , नदिया स्वच्छंद है , हवाओं में सुगंध है , वनों में आनंद है , जीव सारे मस्त हैं , वातावरण भी स्वस्थ है , पक्षी स्वरों में गा रहे , तितलियां इतरा रही , अब तुम ही कहो तुझे क्या कहूं , बीमारी कहूं कि बहार कहूं , पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं , संतुलन कहूं कि संहार कहूं , कहो तुझे क्या कहूं?
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? प्रभु चरणों का दास :- चंदन
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