क्या कहती है तस्वीर
सोचो सोचो आखिर ,क्या कहती है तस्वीर।
बयां कर पाती है क्या, दर्द भी कभी शरीर*
कितनी आड़ी-तिरछी रेखाएं,देती जीवनसार
खुश रहा करो,आईना कहता है तुझे बीमार।
आईना समझाए,दर्द कितना आंखों में समाया।
लेकिन एक मुस्कान ने ,सब का दिलबहलाया।
आंखों के काले घेरे कहते,कितनी रातें तू जागी
कैसे समझें इन तस्वीरों ,से दूर क्यों तुम भागी।
काश,! मुस्कराते रहे हम ,जैसे इन तस्वीरों में
जाने कौन क्या लिखा है, हाथों की लकीरों में
सुरिंदर कौर