क्या अब भी तुम न बोलोगी
कब तक चुप रहोगी
कब तक मुँह न खोलोगी
क्या बाक़ी रह गया सहने को
क्या अब भी तुम न बोलोगी
तुमको बेलन उनको कलम
अधिकारों की परिपाटी
प्रजनन का था फ़र्क़ किया
क्षमता नहीं थी बाँटी
ईश्वर ने ये कब कहा
तुम चौके की ही होलोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
उनका पोषण तेरा शोषण
वो बेहतर तुम कम हुई
उनको जन्म देने वाली
कोख में ही ख़त्म हुई
पितृसत्ता के तराज़ू
कब तक ख़ुद को तोलोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
ख़रीदी गई बड़े धूम धाम से
तू पुरुष की परिणीता
अहो भाग्य कह दास हुई
क़त्ल हुई स्वाधीनता
लक्ष्मण रेखा के अंदर
आख़िर कब तक डोलोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
थोपे गए सुलझाने को
रिश्तों के व्याकरण
जीवन बीता ढूँढती
रसोई बिस्तर समीकरण
काँटों की सैया पर
कितनी रातें सो लोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
शर्म हया सब तेरे गहने
पाठ पढ़ाया बारंबार
लूट ले गए उसी लाज को
संस्कृति के ठेकेदार
क़िस्मत पर अपनी
और कितना रोलोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
टुकड़ों में है काट दिया
तंदूर में आहुति हुई
सड़कों पर निर्वस्त्र घुमाया
महाभारत क्या फिर हुई
कृष्ण नहीं बचा कोई
किस किस को टटोलोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
रेखांकन।रेखा