क्या अब भी किसी पे, इतना बिखरती हों क्या ?
क्या अब भी किसी पे, इतना बिखरती हों क्या ?
क्या अब भी आईने से बातें करतीं हों क्या ?
सुना हैं आपके “वो” ग़ुस्से वाले बहुत हैं
उनके सामने भी खुलकर हस्ती हों क्या ?
The_dk_poetry
क्या अब भी किसी पे, इतना बिखरती हों क्या ?
क्या अब भी आईने से बातें करतीं हों क्या ?
सुना हैं आपके “वो” ग़ुस्से वाले बहुत हैं
उनके सामने भी खुलकर हस्ती हों क्या ?
The_dk_poetry