क्यारी
न मेरी, न तुम्हारी,
ये है हम सब की क्यारी,
उन गढ़ते रिश्तों की,
गहराती यादों की,
परत दर परत जमती
कहानियों की,
याद दिलाती सब क़िस्सों की,
समेटे सब कुछ ज़हन में,
प्यारी है बस प्यारी,
ये है हम सब की क्यारी ।
छोटे से आँगन में,
बड़े नाजों से माँ ने बनाई थी ।
मिट्टी में ख़ुश्बू थी,
एक क़तार से इटें सजाई थी।
दूब से इसकी दोस्ती तो थी,
पर जमी ईटों के इस पार,
तक ही था उसका व्यापार।
बेला, गेंदे, गुलाब की ख़ुश्बू थीं,
बाक़ायदा एक कौने में,
तुलसी की जगह थी।
नन्हें हाथो से माँ ने,
बहुत से बीज बुआए थे।
उन्ही पैडों से चिड़ियाँ-कबूतर ने बाद में,
कई मीठे फल नीचे गिराए थे ।
चीकू अमरूद और जामुन से पूरा मोहल्ला था सरोबार,
और कच्चे आम का क्या कहें,
हर घर की बरनी में उसका था अचार ।
सुबह का अख़बार,बाबूजी के साथ पढ़ती थी
यह क्यारी,
माँ की पूजा के पानी से,बुझाती अपनी प्यास,
नन्हें पौधों को समेटे,चिंटू की बॉल से,
डरती थी यह क्यारी।
दादी के आँचल में छिप कर, फिर एक बार खिल उठती,
प्यारी है प्यारी,
ये है हम सब की क्यारी ।
गवाह है उन सब नातों की,
माँ की बाँट जोती निगाहो की,
कौने से झाँकती बाबूजी की आँखों की,
चिंटू – मिंटू के खेल की,
लड़ाई की समझोते की,
चुपके से टूटते गुलाब की,
वो पहले प्यार की,
दादी के दुलार की,
चिंटू के आगमन की,
बहन की विदाई की,
दादाजी के अंतिम यात्रा की रुलाई की,
सब देखा है इसने सालों साल ।
बचपन में नटखट, जवानी सी अल्हड़,
मध्याह्न में समेटती, झुर्रियों के साथ जिझकती
अब बूढ़ी हो चुकी है तेरी मेरी यारी
फिर भी तकती है भरी आँखों से,
राह हमारी,
उस मासूम एहसास को,
समेटें अपने अन्दर, अनगिनत प्यार को ।
प्यारी है यह प्यारी
ये है हम सब की क्यारी।
२५ नोवेंबेर, २०१७