कौशल्या माता
अयोध्या राज्य की महारानी
राजा दशरथ की धर्मपत्नी
विष्णु अवतारी राम की जननी
माता कौशल्या के धैर्य और सहनशीलता की
पराकाष्ठा को समझना कठिन है
उनका व्यक्तित्व, बड़े बड़े संतो, महात्माओं,
धर्म साधकों, धर्म ज्ञानियों को भी
आइना दिखाने वाला है।
पुत्र के राज्याभिषेक की प्रसन्नता के बीच
वन गमन की अनुमति संग आशीर्वाद देना
पत्नी, रानी, माँ ही नहीं
धर्मपथ पर अविचल चलते जाना
न किसी को कोसना, न दोष देना
न किसी से क्रोध, न ही घृणा
न ही किसी को अपमानित करना
सब कुछ नियति मान सहन करना
और अपना धर्म निभाने की पराकाष्ठा का
उदाहरण बन जाना ही कौशल्या नाम है।
पुत्र वियोग के बीच विधवा होकर भी
तनिक न विचलित होना पत्थर हो जाना नहीं होता
संयम और धर्मपथ पर सबसे ऊंचा हो जाना है,
जो माता कौशल्या का पर्याय है
जिसका दूजा कोई और उदाहरण नहीं है
राजा दशरथ ने राम वियोग में प्राण त्याग दिया
भरत ने कैकेयी को अपमानित किया
शत्रुध्न ने मंथरा से मारपीट तक किया
अयोध्यावासियों के मन में कैकेई खलनायिका बन गई।
पर कौशल्या निर्विकार बन ईश्वर की इच्छा मान
अपने धर्म, कर्तव्य पथ पर डटी रहीं।
जिसने नियति को स्वीकार किया
न खुद धर्मभ्रष्ट हुईं और न ही बेटे को गुमराह किया,
बल्कि धैर्य के साथ वन गमन पर
जाने की अनुमति और आशीर्वाद दिया
चौदह वर्षों तक बेटे बहू का अविचल इंतजार किया,
पर अपने मन की पीड़ा का किसी को
आभास तक होने न दिया।
ऐसी थीं ममता की प्रतिमूर्ति माता कौशल्या
जिनके चरणों में शीश झुकाकर
राम जी मर्यादा पुरुषोत्तम हो गये
माता कौशल्या की कोख को अमर कर गए,
भले ही वो भगवान थे और हैं
पर सुत तो कोशल्या की ही कहे गये।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश