कौन हो तुम
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क्या हुआ इतने मौन हो तुम,
दुनियादारी से गौण हो तुम।
बता रहा मुखडे का उड़ा रंग,
खुद से पूछ रहे कौन हो तुम।
मद्धिम सी चिंता की लकीरें,
बन्द पड़े से षटकोण हो तुम।
तेरा अकेलापन है दर्शाए,
खतरे से भरा ज़ोन हो तुम,
फ़ैसला ले पाने का नहीं दम,
इन्सान जैसे त्रिकोण हो तुम।
मनसीरत ना समझ पाया,
सोच से विषमकोण हो तुम।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)