कौन हो तुम….
ये जो मलय बयार बनके आए हो
ये जो हल्के खुमार सा तुम छाए हो
ये जो धकधक माही समाए हो
कौन हो तुम अपने हो या पराए हो
ये जो श्वास श्वास महकाए हो
ये जो सुध बुध मोरी बिसराए हो
ये जो प्रेम की धुनकी लगाए हो
कौन हो तुम अपने हो या पराए हो
ये जो बिन दस्तक घुस आए हो
ये जो उर आँगन सुमन बिछाए हो
ये जो नयनों में सपन जगाए हो
कौन हो तुम अपने हो या पराए हो
न अपनों की परख समझाए हो
न ही ग़ैरों की पहचान बताए हो
इक डर दिल दहलीज़ बिठाए हो
ये प्रेम है या भ्रम कोई रचाए हो
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया