कौन है राम कौन घनश्याम !!!
इत्तेफ़ाक नहीं हकीकत है,
ये भेद नहीं खुदा की तरफ से,
ये आयोजन है इंसान की ओर से,
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चैतन्य की छटनी नर और मादा है,
एक आक्रामक है दूजे रक्षक है,
एक त्याग है दूजे ग्राहक है,
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एक को सबल दूसरे को निर्बल जताया है,
एक अमीर दूजे गरीब वर्ग बनते है !
स्वाभाविक था स्वभाव में निश्चित है !
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वर्षों पुराना ये खेल वर्णो का,
कोई स्वर्ण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र
कर्म विभाजन एक आयोजन था,
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ये परम्परा बन जाएगी,
सोचा न था !!
ये हूनर को दबाएगी !
देश खोखला वा गुलाम होगा ,
शर्म फिर भी समाज को नहीं आती है !
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क्या मायने उस धर्म के,
जिसमें वंश महत्वपूर्ण के दर्शन हो !
इंसानियत शर्मसार बार-बार हो !
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खो गई वो लीला जिसका !
हर बच्चा कहैन्या सम दिखता हो !
कहीं खो गये वो दर्शन !
जिसमें हर गृहस्थी रामरुप पात्र हो !!!
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कौन गुरु ! कैसी शिक्षा ! कौन गुरु-कुल !
जो अर्थ को समर्थ तक न ले जाता हो !