कौन है खूबसूरत
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कौन है? खूबसूरत!
दिन या रात.
मेरा वजूद या तुम्हारा प्रेत.
प्रातः स्मरणीया प्रकृति
या
रात्रि के भय की प्रवृति.
पर्वत शिखर से
सागर के तट से
दिन पद्मासन पर पसारे पांव
नि:शब्द तो नहीं है.
समुद्र तल से
सामुद्रिक उत्ताल तरंगों के शिखर से
रात चांदनी ओढ़े
शांत तो नहीं है.
उदर फाड़े
दिन रात दोनों है.
भूखा-प्यासा सा दोनों है.
कौन है? खूबसूरत!
बर्छियों भरे दिन
गम छुपाती रातें
देवताओं के भी है.
कमर कसते दिन
दारू,शराब में ढलती रातें
अमीरों के भी हैं.
सपनों को साहस से भरते
मर्द के संघर्षों के दिन.
तवे की रोटी पर
टकटकी लगाये
गरीब बच्चों की रातें
अकेली हैं.
उनके भी नहीं है.
दिन तपा हुआ है.
रातें बेहद ठंढी.
चाहते हुए लोग-
दिन हो थोड़ा ठंढा.
रातें थोड़ी गर्म.
कौन है? खूबसूरत!
दिन के जुल्फ कसे हुए से
चुस्त-दुरूस्त
कविताएँ नहीं लिख सकते.
छाँव छुपा आया है
बंजर खेतों में.
जहाँ श्रम लोहित होता है
उन कारखानों में.
रत के बिखरे जुल्फों में
सौदेबाजी बहुत है
सौदा ही हार जाता है.
कौन है? खूबसूरत!—–
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