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29 Aug 2020 · 1 min read

कौन है अपना

कौन है अपना, कौन पराया,
यह किसी को समझ न आया।

बनकर अपना,जकड़ लिया मोहपाश में,
फिर हौले से अपना असर दिखाया।

लालच का कीड़ा पनप रहा था ऐसा,
यकायक गलत राह पर कदम बढ़ाया।

उसकी प्रीत बनी फिर एक छलावा,
झूठ की ओट में खोखला उसे बनाया।

मुँह में मिश्री,किया वार पीठ पर उसके,
जिसका जख्म वह बेचारा सह न पाया।

निराशा के गर्त में धकेला उसको पहले,
रचकर षड्यंत्र मौत के आगोश में सुलाया।
By:Dr Swati Gupta

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 578 Views
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