कौन से शहर में जाये
कौन से शहर में जाए अपनी दूकान लेकर
ख़रीदो लो मेरे सपने तुम मेरी जुबाँ लेकर
आये है शहर में अपनी नई पहचान लेकर
बेजुबानों के लिए हम इक नई जुबाँ लेकर
राजनीति के सौदे में घाटा हुआ क्या यारों
सब भागे हमको देख अपनी दूकान लेकर
बिकता न्याय वहाँ अँधा कानून हुआ जहाँ
बिकी मिडिया यहाँ भड़काऊ ब्यान लेकर
देश की राजनीति का हाल यह हुआ यारों
सत्ता लो झुगी वालों से फ्री में मकान देकर
राजमहल में आने लगे बेईमान नेता अब
सपनों में बेच जनता को आसमान देकर
बंद कर दूँ मैं भी अपनी कविता की दूकान
कहा ले जाकर बेचे अपना सामान लेकर
सोया है देश मेरा कई बरसों से जाने क्यों
मर न जाऊं इसको जगाने का गुमाँ लेकर
अशोक सपड़ा दिल्ली से
9968237538