कौन भरेगा पेट -नवगीत
छोड़ा गाँव आज बुधिया ने,
बिस्तर लिया लपेट
उपजायेगा कौन अन्न अब,
कौन भरेगा पेट
गायब हैं घर की खिड़की अब,
दरवाजों की चलती.
आज कमी आँगन की हमको,
बहुत यहाँ पर खलती.
लैपटॉप पर खोल रहे हैं,
अब विंडो बिल गेट.
घुसी हुईं खेतों में सडकें,
उजड़ रहे हैं जंगल.
सूख गया पानी झरनों का,
तालाब हुए दलदल.
नालों ने मिलकर कर डाला,
नदियों का आखेट.
बैठ धरा पर चाँद गगन की,
लिख डाली सुन्दरता.
वसुधा के सीने पर निश दिन,
की हमने बर्बरता.
तपती रही धरा, मंगल पर,
पहुँच गया रॉकेट.